भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोकतंत्र / अरविन्द यादव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:56, 22 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोकतंत्र
जिसके मूल में है
धर्म निरपेक्षता
सामाजिक, आर्थिक और
राजनीतिक आजादी
दलित, पिछडों, गरीबों की
अभिव्यक्ति का उदघोष
जाति और धर्म की दीवारों से मुक्त
समतावादी समाज की कल्पना
जो दे सके एक स्वस्थ सुंदर व
अखंड भारत
जहाँ रह सकें सब मिलकर एक साथ
ब्राह्मण और शूद्र बनकर नही
वल्कि मानव बनकर
जो दे सकें सन्देश
मानवता का विश्व को

परन्तु दुर्भाग्य
आज इतने वर्षों बाद भी
हर गली हर रोड पर
हर चौराहे हर मोड़ पर
हर दुकान हर घर पर
हर मंदिर हर मस्जिद पर
मारा जा रहा है
बेमौत कुत्ते की तरह
लोकतंत्र
और लोकतंत्र का ख्वाब

उस पर मडराते हुए गिद्ध
कर रहे है नुमाइश
उसकी लाश की
कौवे खींच कर ले जा रहे हैं
उसके चीथड़े
अपने घोंसलों तक
ताकि खा सकें परिवार के संग
मिल बांटकर।