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इश्क-बेबाक को रोके हुए है / फ़िराक़ गोरखपुरी

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इश्क़-बेबाक को रोके हुए है और ही कुछ,
ख़्वाब-आलूदा निगाहें तेरी बेदार सही.

तेरी आहिस्ता-खिरामी भी सुकूने-दिल है,
इस रविश में भी तेरी शोखी-ए-रफ़्तार सही.

कारवानों को वो गुमराह न होने देगा,
इश्क़ की आखरी मंज़िल रसनो-दार सही.

निगाहें-शौक़ में फिर भी हैं तेरे ही जलवे,
न सही दीद ,तेरी हसरते-दीदार सही.

मेरे इसरारे-मोहब्बत को अगर आँख नहीं,
तेरे इन्कार से पैदा तेरा इकरार सही.

जो सरे-बज़्म छलक जाये वो पैमाना है,
यूँ तो गर्दिश में हरइक सागरे-सरशार सही.

आलमे-कुद्स की पड़ती हैं इन्हीं पर छूटें,
हुस्न बदमस्त सही,इश्क़ सियाहकर सही.

बेखबर !इश्क़ में जीने के लिए जल्दी कर,
जान देने के लिए फुर्सते-बिस्यार सही.

फ़िर भी है क़ाबिले-ताज़ीर कि मुजरिम है'फिराक़',
हमने माना कि मोहब्बत का गुनहगार सही.