भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहीद-गीत / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 7 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जगमगा रहा दिया मज़ार पर!

एक ही दिया, सनेह से भरा;
प्रेम का प्रकाश, प्रेम से धरा;
झिलमिला हवा को तिलमिला रहा;
ज्योति का निशान जो हिला रहा;
मुस्कुरा रहा है अंधकार पर!

यह मज़ार है किसी शहीद का,
दर्शनीय था जो चाँद ईद का;
देश का सपूत था, गुमान था,
सत्य का स्वरूप, नौजवान था;
जो चला किया सदा दुधार पर!

देश का दलन, दुसह दुराज वह,
वे कुरीतियाँ, दलित समाज वह,
वे गुलामियाँ जो पीसती रहीं,
वे अनीतियाँ जो टीसती रहीं,
वह दमन क चक्र अश्रुधार पर

देख आँख में लहू उतर गया,
पंख चैन के कोई कुतर गया;
धधक उठी आग अंग-अंग में,
खौल उठा विष उमंग-उमंग में;
चल पड़ा अमर, अमर पुकार पर!

वह जिधर चला, जवानियाँ चलीं,
बाढ़ की विकल रवानियाँ चलीं,
नाश की नई निशानियाँ चलीं,
इन्‍कलाब की कहानियाँ चलीं;
फूल के चरण चले अँगार पर!

दम्भ का जहाँ-जहाँ पड़ाव था,
सत्य से जहाँ-जहाँ दुराव था,
वह चला कि अग्निबाण मारता,
पाप की अटा-अटा उजाड़ता,
वज्र बन गिरा, गिरे विचार पर!

आज देश के उसी सपूत की,
राष्‍ट्र के शहीद, अग्रदूत की
शान्‍ति की मशाल जो लिये चला
क्रांति के कमाल जो किये चला
लौ जुगा रहा दिया मज़ार पर!