Last modified on 9 नवम्बर 2020, at 17:56

विद्वान का ढेला / तादेयुश रोज़ेविच / उदय प्रकाश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:56, 9 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तादेयुश रोज़ेविच |अनुवादक=उदय प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस कविता को
सुला देना चाहिए

इसके पहले कि शुरू हो
इसका विद्वान होना
इसके पहले कि
यह कविता शुरू हो

इसके पहले कि
यह तारीफ़ें बटोरे

किसी विस्मरण के पल में
यह जीवित हो

इसके पहले कि
अपनी ओर आते शब्दों और
आँखों की यह अभ्यस्त हो

इसके पहले कि
यह विद्वानों के उपदेश लेना
शुरू करे

गुज़रने वाले राहगीर
कतराकर गुज़र जाते हैं
कोई भी नहीं उठाता
वह विद्वान ढेला

उस ढेले के भीतर
एक नन्हीं-सी,
सफ़ेद,
नंगी कविता
जलती रहती है

राख हो जाने तक ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदय प्रकाश