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मेरे गीतों को, कुहुकिनी! / रामगोपाल 'रुद्र'

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मेरे गीतों को, कुहुकिनी! मत गाना!

इनमें हाला है, सुधा-सी जो लगती,
ऐसी ज्वाला है, जलधि में जो जगती,
इन चिर-रीतों को अधर से न लगाना!

मुँह लगते ये स्वर गले पड़ जाते हैं,
चरणों के ये बोल सिर चढ़ जाते हैं;
दिल पर बीतों को जुबाँ पर मत लाना!

इनका अपना क्या, पराया भी क्या है!
यों ही सपना था, गँवाया ही क्या है!
निर्मम प्रीतों को भुलाते ही जाना!