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सावन के भावन मेह / रामगोपाल 'रुद्र'

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सावन के भावन मेह आके झाँक जाते हैं!

अहियों के विष का ज़ोर है,
चन्‍दन के बन में आग;
अंगारी लू सब ओर है,
सूखे मकरन्‍द-पराग;
बिजली से यह तस्वीर बादल आँक जाते हैं!

असमय आई पतझार है,
हरियाली है झंखाड़;
पी-पी की करुण पुकार है,
बन-बन के अंग उघार;
धरती की नंगी लाज बादल ढाँक जाते हैं!

चालों से छापा गात है,
नयनों में जलती प्यास;
अन्‍तर में कोई बात है
स्वाती के घन की आस;
पपिही के दिल के घाव बादल टाँक जाते हैं!