भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह घुटन, यह मौन / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 10 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह घुटन, यह मौन ऐसी साधना किसके लिए है?

महल के फानूस में मधुदीप जो जलता रहा है,
आप अपनी दीनता पर पिघलता-गलता जा रहा है
आवरण तक ही शलभ का भी जहाँ अभिसार होता
ज्योति-छल से जो तिमिर के सत्य को छलता रहा है!
पूछती है रात यह आराधना किसके लिए है?

भाग्य ने जिसको दिया है स्वर्णपिंजर में बसेरा,
चाँदनी से ही जहाँ रहता नयनपथ में अँधेरा;
चाँद भी अंगार होकर जहाँ जुड़ता-जुड़ाता,
और, कुहरा ही भरे रहता जहाँ, सब दिन, सबेरा!
पूछता है व्योम यह टक बाँधना किसके लिए है?