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मेरी छोड़ो / रामगोपाल 'रुद्र'
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मेरी छोड़ो; तुम कैसे हो? अपनी बात कहो!
मेरा तो है वही पुराना
एक राग, एक ही तराना;
अब क्या मुँह खोलूँ, डरती हूँ, तुमको ऊब न हो।
इतने दिन पर तो आए हो!
और अभी से अकुलाए हो!
एक रात तो कटे बात में! मेरे साथ रहो।
आए हो जो सुध लेने को,
पपिही को पानी देने को,
तो आओ, यह आँच काँच की, तुम भी तनिक सहो!