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आज चैत चढ़ गया / रामगोपाल 'रुद्र'

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आज चैत चढ़ गया!

बन तो महके, हमीं न बहके;
आक, ढाक कोंपल, सब लहके;
पर, यह डैना कौन? कि पंचम में क्या तो पढ़ गया?

कहाँ गई, मिलना था जिससे?
खबर मिल रही यह अब किससे?
श्यामा रानी क हरकारा क्या कहता बढ़ गया?

अब भी है क्या चूल्हे पर ही?
बासी हुई कहाँ, होकर भी?
उबली कढ़ी, कटोरा छलका; रस ही सब कढ़ गया!

जल्दी कर, रे चोर चटोरे!
चौरे धर आ माल बटोरे;
जहाँ कटोरा चला कि तुझ पर-पर का भी मढ़ गया!