भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
द कूल आइडिया / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:37, 15 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सच है
या फिर देखूँ मैं
यह सपना ऊल- जलूल
मैं घर पर हूँ
मम्मा मेरी जाती है स्कूल
सुबह नहाकर
मम्मा झटपट
हो जाती तैयार
मैं सोती हूँ खूब देर
माँ तब भी करती प्यार
सुबह सबेरे मम्मा मुझको
लगती सुन्दर फूल
टिफ़िन
भूल जाती मम्मा
मैं देखूँ आँख निकाल
भुनभुन करते बैग खोलकर
देती हूँ फिर डाल
बिलकुल ही उल्टा है यारों
मगर आइडिया कूल
धीरे-धीरे
मम्मा जाना
दाएँ-बाएँ देख
आज अभी लिक्खूँगी तुम पर
सुन्दर एक सुलेख
मेरी प्यारी मम्मा
तुझको कभी न पाऊँ भूल