भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आशिष उनकी नहीं फली / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:25, 16 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आशिष उनकी नहीं फली,
पर लाज मुझे लगती है!

कैसी बात किसी ने पूछी!
तू अब तक छूछी की छूछी,
उनकी होकर, जिस श्री से
श्रील बनी जगती है!

क्या उत्‍तर दे मेरी ममता
औरों से मेरी क्या समता!
उनकी मर्जी जिसे सिंगारें;
मेरी साध सती है!

पानी पर ही प्राण अघाए,
आँचल पर जाड़ा कट जाए;
माया अपनी सिद्धि दिखाकर
मुझको क्या ठगती है!