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मुझे हारने का दुख कम है / रामगोपाल 'रुद्र'
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मुझे हारने का दुख कम है!
अधिक सोच है, वचन तुम्हारा
जाता है दुनिया से हारा;
श्रद्धा की हो रही हँसाई;
हेला हँसती, भक्ति भरम है!
कहते हैं, दरबार तुम्हारे
देर भले हो, न्याय न हारे;
इस अँधेर का क्या जवाब दूँ?
साँसत में मेरा संयम है!
जोर तुम्हारे गरब-गहेला
लड़ा किया मैं निडर अकेला;
खल-वन्दना नहीं क्यों कर ली
मुझको बस इसका ही ग़म है!