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नयन आकाश होना चाहिए / रामगोपाल 'रुद्र'

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नयन आकाश होना चाहिए तुमको बसाने को;
बरसना चाहिए घन-सा, तुम्हें बरबस हँसाने को;
तुम्हारी आँख में मैं जँच गया यों ही नहीं, साक़ी!
कलेजा काढ़ रक्खा था हथेली पर, डँसाने को!