क्या करूँ, रोज़ ही तो इतना धोता हूँ!
पर दगियल ही रह जाता है यह बासन।
मालिक को कौन गरज? जन पर जो बीते!
बिगड़ैल मालकिन का घर में है शासन!
क्या करूँ, रोज़ ही तो इतना धोता हूँ!
पर दगियल ही रह जाता है यह बासन।
मालिक को कौन गरज? जन पर जो बीते!
बिगड़ैल मालकिन का घर में है शासन!