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हर सुबह लाल चादर / रामगोपाल 'रुद्र'
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हर सुबह लाल चादर जो बिछ जाती है,
पथ के दूषण पर पर्दा पड़ जाता है!
मन की अवनी को चित्राम्बर कर दे,
जिस पर तू किरण-चरण धरता आता है!