बिना जाने बूझे 
कौन किस समय 
क्या कह जाता है
कि एकबारगी पता ही नहीं चलता
माँ की आँख को
गालीनुमा जुमला बनाने वाले को भी
कहाँ पता था 
कि माँ की आँख के
असल मायने क्या हैं 
कथा है कि मिट्टी खाते
बालकृष्ण के मुख में दिखा था
माँ को समूचा ब्रह्माण्ड 
सोचता हूँ और हैरान होता हूँ 
कि बालस्वरूप कृष्ण के 
मुँह में था ब्रह्माण्ड 
या माँ की आँख में? 
माँ की आँख देख लेती है
बच्चे की आँत में 
कितना है अन्न का दाना
पढ़ लेती है
सूखे पपड़ियाए होंठों की प्यास 
सहेज लेती है
घर-परिवार पास-पड़ोस का
दुख-सुख
माँ की आँख 
आँख कहाँ होती है
होती है सृष्टि का पूरा विन्यास 
जो देशकाल की सीमाओं से परे
सब जगह है एक समान
हममें से कितनों ने
माँ की हिदायतों से झल्लाकर 
जब जब भी दिखाई माँ को आँख
वहाँ कुछ ऐसा दिखा
जो हो सकती है सिर्फ़ 
माँ की आँख