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काँटों से न शिकवा कोई / अशेष श्रीवास्तव
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काँटों से ना शिकवा कोई
ज़ख्म तो फूलों से मिले...
ऐसा लगा जानते ही नहीं
जब कभी उनसे मिले...
दूर से बहुत अच्छे लगे
पास ऐब दिखने लगे...
मिलने वाले बहुत मिले पर
मन के मीत थोड़े ही मिले...
औरों की तो बात करें क्या
ख़ुद कहाँ ख़ुद से मिले...
नदियों, वनों, पर्वत गये पर
वो हमें दिल में मिले...