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घनघोर घटा छाई है / अशेष श्रीवास्तव

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घनघोर घटा छाई है
देखा जिधर जिधर
मिलता नहीं है चाँद भी
देखा जिधर जिधर...

बाहर से बहुत खुश हैं
भीतर मगर उदास
हर शख़्स परेशान है
देखा जिधर जिधर...

औरों की ख़ामियाँ यहाँ
बस देखते हैं लोग
ख़ुद की तरफ़ नज़र नहीं
देखा जिधर जिधर...

पड़ने पर वक़्त कोई भी
देता नहीं है साथ
रिश्ते हैं सिर्फ़ नाम के
देखा जिधर जिधर...

अपने में ही मशगूल है
हर शख़्स बस यहाँ
औरों की कोई फ़िक्र ना
देखा जिधर जिधर...

खंजर ये किसने चुपके से
मुझ पर चला दिया
अपने ही अपने लोग थे
देखा जिधर जिधर...

दिखावे में ही लगे हैं
बस लोग सब यहाँ
हक़ीक़त से बेखबर
देखा जिधर जिधर...

सब छोड़ के चले गये
तनहा मैं रह गया
अपनी ही सदा आती है
देखा जिधर जिधर...

रोने से यहाँ कुछ भी
हासिल नहीं ऐ दोस्त
हक़ बढ़ के छीना जाता है
देखा जिधर जिधर...