Last modified on 24 नवम्बर 2020, at 17:39

आदमी के लिए / महमूद दरवेश / विनोद दास

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 24 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महमूद दरवेश |अनुवादक=विनोद दास |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

  उन्होंने उसका मुँह कपड़ा ठूँसकर बन्द कर दिया
  उसके हाथ मृतकों की चट्टान से बाँध दिए
  और कहा — हत्यारा

  उन्होंने उसका खाना, उसके कपड़े और झण्डे छीन लिए
  उसे मुज़रिमों वाली काल-कोठरी में डाल दिया
  और कहा — चोर

  उन्होंने हर एक बन्दरगाह से उसे खदेड़ दिया
  उसकी जवान महबूबा छीन ली
  फिर कहा — रिफ्यूजी
 
  हवालात हमेशा नहीं बने रहेंगें
  न ही ज़ंजीरों की कड़ियाँ
  
  नीरो मर गया, रोम आज भी बाक़ी है
  वह अपनी उदास आँखों से लड़ रहा है
  और गेहूँ की पकी बालियों से गिरे दानों से
  पूरी घाटी भर जाएगी

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास