भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक शब्द की कविता है / विजय सिंह नाहटा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 27 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय सिंह नाहटा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक शब्द की
कविता है
प्रेम,
सबसे लघु शिल्प में
रचा गया
विराट महाकाव्य
यूं बहुत-बहुत पचा गया
जीवन रण में
जिसे जीतना था
एक शब्द भर की त्वरा में
क्या यही केवल यही
परम पाथेय जग भर का
क्या यही; आयोजन अनादि की धूप छांव में
होगी होगी यह
अकाट्य सी निष्पत्ति
सकल कोई सारभूत
अंतिम साध्य धन
अवसान के बाद भी जो बच रहेगा: निष्कलुष अकेला
गुजर कर बीत जाने की
यूं क्षण में रीत जाने की
शायद, वही एक रसबोध
जो घेरे रहेगा निज आत्म
वही अंतिम सनद रहेगी
कायम वक्त बेवक्त।