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इस चट्टान पर / विजय सिंह नाहटा
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इस चट्टान पर
आंक दो अजेय
अपने पदचिह्न
क्योंकि
कभी फिर आएंगे
जब
अनावश्यक उत्कंठा लिए
सर्दियों की गुनगुनी धूप में
इन वादियों में
बिल्कुल निरूत्तर से
लगभग प्रेम से पराजित
भर ही देगी
गहराता शून्य
तब; इस पर प्रान्तर में
यह निरीह सी याद।