Last modified on 27 नवम्बर 2020, at 20:09

दूसरी दुनिया / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:09, 27 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवनारायण जौहरी 'विमल' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हरे भरे पेड़ पौधों की
हंसती हंसाती दुनिया
ओस की बूंदों-सी जहाँ
टपकती रहती हैं खुशियाँ
गुलाबी अधरों पर खेलती
रहती है रेशमी मुस्कान।
पवन के संगीत पर
झूमते है सब बडे छोटे।
यह दुनिया शांतिनिकेतन है
गीतांजली के बोल गूंजते
रहते यहाँ वातारण में
यहाँ भी संघर्ष करना
पड़ता है जीने के लिए
बीज को प्रस्फुटन के लिए
हवा पानी और मिट्टी चाहिए
होड मची रहती है सूरज की
रश्मियों में बहती संजीवनी
ऊर्जा को पकड़ने के लिए
पर टांग घसीटन नहीं होत।
स्वाबलंबी है अपना भोजन
बना लेते हैं अपने आप
जड़ों से खीच लेते हैं पानी
यहा दूसरों की थाली पर
नजर गढ़ाई नहीं जाती \
न कोलाहल न छीना झपटी
न मारपीट न माहाभारत
न कृष्ण को अवतरित
होने की ज़रूरत॥