भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिन अपराध मन मोहन को दोष थामि / चंद्रकला

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:22, 28 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रकला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavitt}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिन अपराध मन मोहन को दोष थामि,
काहे मन मान धारि प्यारी दुख पावै है।
चलि री निकुंज माहिं मिलि री पिया सो बेगि,
मन बच काम लाय तो ही धरि ध्यावै है॥
‘चंद्रकला’ तेरे ही सनेह सने एक पाय,
ठाढे ह्वै जमुना तीर पीर सरसावै है।
लै-लै नाम तेरो ही बखाने तोहि प्रान प्यारी,
सुनि री गुपाल लाल बाँसुरी बजावै है॥