Last modified on 28 नवम्बर 2020, at 18:51

चतुरभुज झुलत श्याम हिंडोरे / प्रतापबाला

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:51, 28 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतापबाला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatP...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चतुरभुज झुलत श्याम हिंडोरे।
कंचन खंभ लगे मणिमानिक रेसम की रंग डोरें॥
उमड़ि घुमड़ि घन बरसत चहुँदिसि नदियाँ लेत हिलोरें।
हरी-हरी भूमि लता लपटाई बोलत कोकिल मोरें॥
बाजत बीन पखावज बंशी गान होते चहुँ ओरें।
जामसुता छबि निरखि अनोखी वारूँ काम किरोरें॥