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मातृ-भू का ऋण (मुक्तक) / शंकरलाल द्विवेदी

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मातृ-भू का ऋण चुकाने के लिए।
दम्भ दुश्मन का झुकाने के लिए।
प्राण ले लो; पर विवश करना न तुम-
पाँव अब पीछे हटाने के लिए।।