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सब कुछ लूट लिया है / आन्ना अख़्मातवा
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सब कुछ लूट लिया है
धोखा दिया गया है
बेच दिया है
महा-मृत्यु के काले डैने
ऊपर अपने आकर फैले
कुतर दिया है
भूखी इच्छाओं ने सब कुछ
फिर भी ज्योति-रेख क्यों चमक रही है
अपने सम्मुख
दिन होते ही
नगर-पास का भेद भरा वन
चैरी की ख़ुशबू से
भर उठता है कन-कन
आई निशा
कि निर्मल अम्बर जौलाई का
नए-नए नक्षत्रों से है जगमग करता
नहीं जानता है यह कोई
गन्द भरे टूटे घर जो ये
एक दिव्यता
बहुत क़रीब आ रही इनके
आदि-काल से हम
जिसकी कर रहे कामना
अंग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक
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