Last modified on 3 दिसम्बर 2020, at 10:30

सब कुछ लूट लिया है / आन्ना अख़्मातवा

Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:30, 3 दिसम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: आन्ना अख़्मातवा  » सब कुछ लूट लिया है

सब कुछ लूट लिया है
धोखा दिया गया है
बेच दिया है
महा-मृत्यु के काले डैने
ऊपर अपने आकर फैले
कुतर दिया है
भूखी इच्छाओं ने सब कुछ
फिर भी ज्योति-रेख क्यों चमक रही है
अपने सम्मुख

दिन होते ही
नगर-पास का भेद भरा वन
चैरी की ख़ुशबू से
भर उठता है कन-कन
आई निशा
कि निर्मल अम्बर जौलाई का
नए-नए नक्षत्रों से है जगमग करता

नहीं जानता है यह कोई
गन्द भरे टूटे घर जो ये
एक दिव्यता
बहुत क़रीब आ रही इनके
आदि-काल से हम
जिसकी कर रहे कामना


अंग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक

यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ