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वह घर की थी / रमेश पाण्डेय

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द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स


4.


वह घर की थी

यहाँ उसका घर था

अक्सर घर और गौरैया यह तय करने बैठ जाते


पिता बाहर होते तो

बांधे रखती अपने शब्द-पाश से घर-दुआर


भाई के बीमार पड़ने पर

घर में घुसती तो बेआवाज़ फरफराते उसके पंख


माँ के भीतर गठियाई नदी का बंधन जब ढीला पड़ता तो

वह चुपके से देखती और

क़तरा-क़तरा टपकती सारा दिन


(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है