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कलम / आरती 'लोकेश'

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कलम की यह नोंक नहीं, धार है तलवार की,
भर आक्रोश यह उगले, या बरसात प्यार की।

प्रेम-शांति से काम ले, जरूरत न तकरार की,
जन-जन में जागृति लाए, समाज के उद्धार की।

कलम के सिपाहियों को, काम न हथियार से,
यही अनन्य रक्षक हैं जो, काम न लें प्रहार से।

ग्रंथ ही रणक्षेत्र बने, लेखन ही धर्म जहाँ,
मानवता के हित रहा, लेखन का मर्म जहाँ।

क्रांति की मशाल यह है, रक्त का उबाल है,
एक शब्द विचार बदल दे, बात यह कमाल है।

आहत एक हृदय व्यथा, व्यक्त होती भावमय,
निर्जीव कुछ वर्ण निहित थे, बन जाते प्राणमय।

आज़ादी दुन्दुभी यही, समर्पण की चाल भी,
तम में प्रकाश प्रसारित, दुर्भाग्य से ढाल भी।

शिक्षा की ध्वजा कलम है, ज्ञानमूल का मंत्र है,
प्रगति की कमान किताब, विज्ञान रहस्य तंत्र हैं।