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हालात / आरती 'लोकेश'

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हालात की टूटी छतरी के छेदों से,
चिलचिलाती भाग्य की धूप सताए।
क्षीण सी काया के लघु भार से भारी,
उत्तरदायित्वों की गुरु गठरी उठाए।

निराशा के बिखरे तारों से बुन झीना,
आशा का मजबूत बिछौना बिछाए।
उधड़े कई ख्वाबों के बेरंग पैबंद से,
अरमानों का गमछा काँधे फहराए।

सूखे हलक में लार सटक भीतर,
पसीने से बाहर तर बदन छलछलाए।
सलोने वदन पर अभावों की मार से,
गंभीर चिंता की गहन रेखा उभर आए।

यौवन में लिपटी सौंदर्य की मूरत पर,
वेदनापूर्ण उम्र की चादर लिपटाए।
घर की दीवारों सी टूटी चटाई पर,
हरे मीठे साबुत तरबूज सजाए।

दचकी पड़े बर्तन के आकार के,
पात्र में छुट्टा देने को सिक्के रखाए।
धीमे मधुर कंठ की बना स्वर लहरी,
हिम्मत से ऊँची आवाज़ भी लगाए।

ताज़े मीठे तरबूज चख लो बाबू,
बार-बार हाथ जोड़ गुहार लगाए।
अधीर अपने मन को भींच पल्लू से,
जकड़ के धैर्य को फिर दोहराए।

काम की जल्दी और धूल-धक्कड़,
राहगीरों की नज़रों में वह न आए।
सुबह से दोपहर हुई फिर शाम भी,
एक पैसा दिनभर न वह कमा पाए।

गर्मी की तीक्ष्णता या भाग्य की मार,
ठंडक जो देते वे फल कुम्हलाए।
फल के रस से अधिक रसीले नयन,
बच्चों की भूखी छवि सोच छलछलाए।