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अद्भुत अद्वितीय / आरती 'लोकेश'

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अद्भुत है कर्म कुएँ से लटकी डोर का,
निशिदिन कर्म करे मुँह न देखे भोर का।
डूबती है लेकर आशाओं की बाल्टी,
खींचती प्यासे की दुआओं के छोर का।

अद्भुत है मधुमक्खी के छत्ते का मर्म,
शहद से भर देता मिठास इसका धर्म।
आश्रय मधुप को आकर्षित मधुकर,
मोम का तन लिए सेवाभाव ही कर्म।

अद्वितीय है त्याग पेंसिल के रूप का,
ज्ञान की है वाहक दीये की धूप का।
सिक्के को रख आगे पीछे है चलती,
मान बहुत करती है घटते स्वरूप का।

अद्वितीय सहयोग दे पेड़ से टूटी छड़ी,
टीसती निज तात से जुदा होती घड़ी।
देख नन्हे बालकों की ललायित नज़र,
तोड़ अपने फल हित बन जाती कड़ी।