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अंगारों के गीत / नवीन कुमार सिंह

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जब जब सोने की चिड़िया पर गिद्ध कोई मंडराया है
तब तब हमने अंगारों को गीत बनाकर गाया है

कविता यह मोहताज नहीं है अलंकार आभूषण की
शौर्य शिवाजी की गाती यह, बनकर कविता भूषण की
लोकतंत्र में जनता को भी लड़ने का हथियार दिया
दिनकरजी के छंदों ने, जब सत्ता को ललकार दिया
राजमुकुट जब मद बन, जन का शोषण करने आया है
तब तब हमने अंगारों को गीत बनाकर गाया है

भगत सिंह, झाँसी की रानी, भूल गए, वीरो की गाथा बलिदानी भूल गए
कैक्टस से घर बार सजा के रखा है, देना हम तुलसी को पानी, भूल गए
संस्कृतियों के महायज्ञ को फिर से आज रचाया है
जब जब हमने अंगारों को गीत बनाकर गाया है

माना कि कविता में यौवन, सावन औ मधुबन होता है
पर स्वदेश अस्मिता का जब निस-दिन चीर हरण होता है
मेरा भारत घिरा हुआ जब दुश्मन की ललकारो में
मैं तुमको खोने न दूंगा पायल की झंकारों में
बिगुल बजा है युद्ध छेत्र में, माँ ने हमे बुलाया है
इसीलिए ही अंगारों को गीत बनाकर गाया है