भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओह! जिन्दगी / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 22 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट |संग्रह= }} Category:चोका...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देनी है तुम्हें
गुरु-दक्षिणा कुछ
ओह! जिन्दगी
पाठशाला के बिन
सिखाया मुझे
गिर के सँभलना।
मुखौटे सभी
तुमने तो उतारे
जब भी किए
दुःख ने पन्नों पर
गहरे हस्ताक्षर।