भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक मुक्तक / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:32, 23 दिसम्बर 2020 का अवतरण
ज़िन्दगी भी क्या कि अपनों में अकेली हो गई,
मिली अनजानी कोई उसकी सहेली हो गई,
खुल गए उत्तर सहज ही कठिन मसलों के,
बात छोटी सी कभी मुश्किल पहेली हो गई ।
(दिसम्बर, 2021)