हवन / श्रीकांत वर्मा

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चाहता तो बच सकता था
मगर कैसे बच सकता था
जो बचेगा
कैसे रचेगा

पहले मैं झुलसा
फिर धधका
चिटखने लगा

कराह सकता था
मगर कैसे कराह सकता था
जो कराहेगा
कैसे निबाहेगा

न यह शहादत थी
न यह उत्सर्ग था
न यह आत्मपीड़न था
न यह सज़ा थी
तब
क्या था यह

किसी के मत्थे मढ़ सकता था
मगर कैसे मढ़ सकता था
जो मढ़ेगा कैसे गढ़ेगा।

-अपना फलसफ़ा...

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