भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसका रहना / रघुवीर सहाय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:10, 7 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवीर सहाय |अनुवादक= |संग्रह=एक स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोज सवेरे
उठकर पाते हो
उसको तुम घर में

इससे
यह मत मान लो
वह हरदम
मौजूद रहेगी I