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अनाज़ का गणित / सत्यनारायण स्नेही

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लहरा रहे थे उसके खेत में
कोदा, कांवणी, बथू और जौ
जब दाखिल किया था उसे
शहर के कालेज़ में
भेजता था बापू हर मास
एक थैली
घराट में पीसा
मक्की का आटा।
नहीं चढ़ सकता आज वह
गांव की पगड्ण्डियां
बहुत बुरी लगती है
गोबर की गंध
चूल्हे का धुआँ
बापू की वह गाय बैल
खेत खलियान की बातें
सेकी नहीं कभी उसके बच्चों ने
चूल्हे की आग
खाई नहीं दादी के हाथ की
छास और मक्की की रोटी
वह नहीं समझते दादी की भाषा
सोये नहीं शीत रातों में
राजा रानी के किस्से सुनते।
उनके सामने
हर वक़्त मौजूद है
पूरी दुनिया
पूरा ब्रह्माण्ड
उनकी नज़रों से परे हैं
दानों का रोटी में बदलना
वह नहीं पढ़ते
ज़मीन और अनाज का गणित
खेत और घर का इतिहास
गाँव की कविता