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पहाड़ का कवि / सत्यनारायण स्नेही

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पहाड़ का कवि
नहीं लिखता
लाल किले से देश को
सम्बोधित करते प्रधानमन्त्री पर कविता
उसे नहीं पता कैसे चलता है
मुम्बई में फिल्मीस्तान
पांच सितारा होटलों की धूम
आई. पी. एल. का मैच
डीजे और रेव पार्टी की रिवायत
भूमिगत बाजार और मैट्रोट्रेन
पहाड़ की कविता में
नहीं झूलसते लू से आदमी
नहीं बहते बाढ़ से गांव
कोहरे से नहीं होते अदृश्य पहाड़।
पहाड़ की कविता में
होते हैं केवल पहाड़
जिन पर जमी होती है बर्फ़
जिनसे निकलती है नदियां
कविता में
जब आते हैं पहाड़
शब्द बन जाती है नदियां
बहाकर ले जाती है पहाड़ को
वहां तक
जहां पनपते हैं
कविता के बीज
पहाड़ का कवि जानता है
अब निगलने लगा है पहाड़
अपनी नदियों को
जिससे चमकता है
आई. पी. एल. का मैदान
पूरा फिल्मीस्तान
पांच सितारा होटल में रेव पार्टी
प्रधानमन्त्री का भाषण
और भूमिगत बाज़ार।
कविता में पहाड़
झेलता है
लू, बाढ़, भूकम्प से भी
ज्यादा ताकतवर
हाथियों के वार
जहां सजा हैं
बारूद का बाज़ार
जबकि
बांटता है पहाड़
अनवरत अपनी मिठास
पहाड़ का कवि
लिखना चाहता है हमेशा
पहाड़ का दर्द
पहाड़ की खुशी
पहाड़ का राग
पकड़ना चाहता है
नदियों में बहते
उस पहाड़ को
जो बो रहा है
कविता के अधिसंख्य बीज
और उज्ज्वल
अडिग, निर्भय
खड़ा है सदियों से
धरती और आकाश के
बीच हो रही
कुदरती और इन्सानी
हरकतों में