रच रहा हूँ मैं कविता / सदानंद सुमन

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आज
जबकि होने लगी हैं प्रदूषित
बहुत सारी चीजें,
बचाना चाहता हूँ मैं
आगामी नस्लों के लिए
सारी अच्छी चीजें

मसलन
बचाना चाहता हूँ मैं
मिट्टी की ऊर्वरता
हवा की स्वच्छता
जल की शुद्धता
आकाश की नीलिमा

बचाना चाहता हूँ मैं
सभ्यता के चमकीले पृष्ठ
धर्मों के मूलार्थ
संगीत के सातों स्वर
भाषा की सहजता

बचाना चाहता हूँ मैं
रिश्तों की मधुरता
चिड़ियों की चहचहाहट
जुड़ों में खुँसे फूल
चेहरों की मुस्कान

प्रदूषणों से भरे ऐसे समय में
जबकि दिख रहा हर ओर
एक भयानक सघन अंधेरा-
हारा नहीं हूँ अभी
रच रहा हूँ मैं कविता।

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