कोई शगल, कोई शौक नहीं
चाहत भी नहीं नाम-यश की
हृदय की संवेदना को
चुभता है जब कोई शूल
और होने लगती है व्यथा
मर्म को भेद
शब्दों में फूटती है तब कविता
जीवन-यात्रा के कठिन पथ पर
चलते जब पथिक
रोकने को राह
खड़े होते जो बन बाधा
खिलाफ उनके
छेड़ने की जंग
सेनापति की तरह
साथ होती है तब कविता
व्यथा और घुटन
शोषण और उत्पीड़न
लेते जिन कारणों से जन्म
कारक तत्वों के विरूद्ध
विद्रोह का परचम उठाये
तन कर खड़ी होती है तब कविता!