भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरु / शीतल साहू

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:33, 10 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीतल साहू |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुरु, जो दे हमे ज्ञान और प्रेरणा
गुरु, जो हमे बताए जानना और सीखना
गुरु, जो बताए कमी और उसे सुधारना
गुरु, जो दिखाए रास्ता और बताए उस पर चलना।

ये प्रकति है विशाल और गुनी महान
रज रज और कण-कण है इसकी, ज्ञान की खान
यही है सर्वोच्च गुरु, जो दे दिव्यज्ञान की दान
जो दिखलाती मार्ग और बनाती श्रेष्ठ इंसान।

प्रथम गुरु है, ये धरती माता
जो सिखाये धैर्य, परोपकार और क्षमाशीलता
चाहे करो इस पर कितना उत्पात और आघात
ये रखती धीरज पर नहीं करती किसी पर प्रतिघात
ना ही रोती, ना वह बिलखती, करती सर्वदा सबका हित।

दूसरी गुरु है, हमारी प्राणवायु यह वात
जो सिखाये संतोष, निर्विकार और रहना निर्लिप्त
ले भोजन इतना जो करे निर्वाह और हो इन्द्रिय तृप्त
करे उतना ही विषय-भोग, सो ना हो बुद्धि विकृत
हो लक्ष्य पर ध्यान स्थिर, करे ना द्वेष ना हो संलिप्त।

तीसरा गुरु है, आकाश पिता
जो सिखाये अनासक्ति और सर्वव्यापकता
रहे असंग, सर्वव्यापी, अनासक्त और अखंडता
हो जन्म, मरण और समयकाल से निर्लिप्तता
रहे सृष्टि और प्रलय के प्रभाव से अछूता।

चतुर्थ गुरु है, जल की शीतलता
जो सिखाये शुद्धि और पवित्रता
हो स्वभाव में स्वच्छ, स्निग्ध और मधुरता
हो गंगा सम निर्मल और पावनता
जिसके दर्शन, स्पर्श और स्वभाव से मिले सबको पवित्रता।

पंचम गुरु है, अनल की उष्णता
जो सिखाये तेज, अपरिग्रह और सर्वग्राहिता
बने ओजस्वी, तेजस्वी और पाये ज्योतिर्मयता
बने तपस्वी, इन्द्रिय अपराभुत और रखे अपरिग्रहता
बने अग्नि समान साधक जो सर्वत्र अन्न ग्रहण करता,
और भूत, भविष्य के अशुभ कर्मो को भस्म है कर देता।

षष्ठम गुरु है, चाँद की शीतलता
जो सिखाये स्थिरता और अपरिवर्तनीयता
जैसे चंद्र कलाये बदलती लेकिन नहीं घटती उसकी पूर्णता
उसी सम जन्म से मृत्यु पर्यन्त शरीर है बदलता
और आत्मा है अपरिवर्तनशील और बनी रहती उसकी स्थिरता।

सप्तम गुरु है, सूर्य की तेजस्विता
जो सिखाये अनासक्ति और इंद्रियातीतता
जैसे सूर्य नहीं करता पात्र अपात्र में भिन्नता
देता सभी को समान प्रकाश और उष्णता
बने योगी पुरुष सम, जो विषय को तो है ग्रहण करता
पर कालनुकूल, त्याग विषय का कर देता।

अष्टम गुरु है, पक्षी कपोत
जो सिखाये अनासक्ति और असंगता
जैसे बहेलिया के जाल में फसा देख अपना परिवार
कपोत करता विलाप और प्राण अपना है तज देता।
वैसे ही नर, कुटुंब पालन में होकर आसक्त
सुध-बुध अपना खो बैठता, और विलाप है करता
नही मिलती उसे शांति और कटुम्ब संग कष्ट वह पाता।