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ए बछर के देवारी / शीतल साहू

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आगे आगे गा सुग्घर देवारी तिहार
धन सम्पत्ति अउ उजियारा के फुहार
गाँव हो या नगर अउ सहर,
सबो जगह चमकत हे सबके घर अउ दुआर।

किसम किसम के मिलत हे,
खई अउ खजानी।
जगह जगह दमकत हे,
झालर अउ लाईट।
आनी बानी के दिखत हे,
सुरसुरी अउ फटाका।
माटी अउ गोबर के बिक़त हे
कलशी अउ दिया।
चारो मुड़ा चलत हे,
साफ सफ़ाई के काम अउ बुता।

चारो कोती बने-बने हे सब दिखत
मन मा उल्लास के बाजा हे बजत
सरदी मा घलो, तिहार के उच्छाह में हे सब गरमत
किंजर किंजर के लेवई देवई घलो, चारो मुड़ा हे चलत।

सुनहु गा कका भैय्या,
अउ सुनहु वह मोर दाई बहिनी
करौ गा साफ़ अउ सफई,
करौ वह लिपई अउ पुतई
घुमव गा बजार,
अउ बिसावव आनी बानी
बछर मा एके बेरी आथे ए देवारी तिहार
ए बात मा कोनो ला नई हे गा इनकार

पर तिहार के धुन म झन भुलाहु
सबो मन एक ठन बात
गड़े हे नज़र येदे कोरोना के आँखी
करत हे निगरानी, सोचत कइसे बढ़ाये वह अपन पांखी।

सबो नियम धीयम के करत रहो गा पालन
राखहु सोसल डिस्टेंसिङ्ग अउ लगाहु गा मास्क
घेरी बेरी धोवत रहो गा साबुन ले अपन हाथ
ए बछर के देवारी मा, सुन लौ गा मोर अवहान
थोड़कुन जोखिम मा हे हमर लइका अउ सियान
मनावों गा तिहार, रखके मरजादा अउ धियान
काबर कि संगी, तिहार ले बड़के हे सबे के परान्।