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साँझ - 2 / अनिता मंडा
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जले ढीबरी
बंद दरवाज़े में
नीचे से झाँके
रोशनी की लकीर
ज्यों बैठा हो फ़कीर
ऐसे ही क्षितिज तले
सूरज गया है अभी-अभी।