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नया गीत लिखने का मन / नरेन्द्र दीपक
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नया गीत लिखने का मन
अलग सलग दिखने का मन
मन है मैं धूप में जलूँ
कई कई रूप में जलूँ
ऐसा कुछ चलन ही मिले
उम्र सारी जलन ही मिले
गहराई सहने का मन
धार-धार बहने का मन
गीत सभी दुख ही गढ़े
सूली सभी सपने चढ़ें
तार-तार मन सितार हो
ऐसा फिर बार बार हो
धुआँ-धुआँ जलने का मन
बूँद-बूँद ढलने का मन
ओर छोर मिले ना मुझे
कभी भोर मिले ना मुझे
अँधियारा आसपास हो
और और पास पास हो
सुबह दर्द बोने का मन
शाम उसे ढोने का मन