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किस कदर डर गया कोई / नरेन्द्र दीपक
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किस कदर डर गया कोई,
कहकर मुकर गया कोई।
ग़ुलाब होने की चाह में,
काँटों से भर गया कोई।
कितना सहेज कर रक्खा,
कितना बिखर गया कोई।
घर तो कब का उजड़ गया,
कौन से घर गया कोई।
दिल पर बोझा लाद गया,
दिल से उतर गया कोई।
उदास चेहरा छोड़ गया,
आँख नम कर गया कोई।
जाने कहाँ से आया था,
जाने किधर गया कोई।
भीतर अजब-सी हलचल है,
गहरे उतर गया कोई।
मुड़-मुड़ कर देखता रहा,
इस तरह घर गया कोई।