भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुलचान्दनी के फूल / लुईज़ा ग्लुक / झरना मालवीय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वसन्त के अग्रदूत और उम्मीद के प्रतीक घण्टियों के रूपाकार वाले ये सफ़ेद जंगली फूल, जिन्हें अँग्रेज़ी में ’स्नोड्रॉप’ कहते हैं और हिन्दी, उर्दू फ़ारसी में ’गुलचान्दनी’, सर्दियों के ठीक अन्त में ज़मीन पर पड़ी बर्फ़ के नीचे खिलना शुरू हो जाते हैं।

तुम्हें पता है क्या थी मैं, कैसे जिया मैंने? तुम्हें पता है
क्या होती है हताशा-बेबसी; तो फिर
सर्दियों का कोई अर्थ ज़रूर होगा तुम्हारे लिए ।

बचे रह जाने की उम्मीद नहीं थी मुझे,
धरती ने दबा रखा था मुझे । मैंने नहीं की थी उम्मीद
कि फिर से जागूँगी मैं, महसूस करूँगी
धरती की नमी में अपनी देह को
फिर से हरकत करते हुए, याद करूँगी
इतने समय के बाद कि कैसे खिलना है
एकदम आरम्भिक वसन्त की
सर्द रोशनी में —

सहमे हुए, हाँ, पर फिर से तुम्हारे बीच
चीख़कर कहते हुए कि हाँ लगाओ, ख़ुशियों की बाज़ी

सर्द बेधती हवा में नई दुनिया की ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : झरना मालवीय