Last modified on 22 जनवरी 2021, at 00:19

सोचै छै बुधना / अनिल कुमार झा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:19, 22 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल कुमार झा |अनुवादक= |संग्रह=ऋत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आरी पे बैठी के सोचै छै बुधना
अबकी आबे की होतै हो राम।

अखार बीतै छै मेघ नै दीखै छै
होर फार होलै नै बिचड़ो जुतै छै
बीहन परैतै नै रोपो की होतै
घरोॅ में सभैं की खैते हो राम।

खुरपी टनाटन करी के उछलै
दुबड़ी सभे टा जरी के मरलै,
गाभिन गैया दुआरी पे डिकरै
माली के जान लगै जैते हो राम।

धरती के ठोरोॅ पर पपरी फटै छै
पानी चुँहाड़ी पताले सटै छै,
कर्जा महाजन रो सूद जाय पीने
मोट मोट होलो मोटैते हो राम।

हाय रे विधाता नै कैन्हेॅ बुझाय छोॅ
धरती के हालत नै कैन्हें सुझाय छोॅ,
राम राम करी करी दिन रात कटै छै
जिनगी पसीना चुऐत्ते हो राम।