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रुसि रुसि जैथों बहार हे / अनिल कुमार झा

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देखोॅ देखोॅ लागै छै हमरो सजनमा
घुरी घुरी करै मनुहार हे,
बदरा झुमी झुकी ऐलै ऐंगनमा
चाहै करै लेॅ प्यार हे।
ठाड़ी दुआरी पर वाट निहारौं
कारो होलै अकास हे
बूंद बूंद करी गिरलै धूरा पर
सोन्हों भेलै विलास हे,
लागै झरै लेॅ व्याकुल मनो के
पूरा होलै विहार हे।
पूछै लेॅ मोन करे हे निर्मोही
गेल्हेॅ कैन्हेॅ विदेश,
चिंता डोर भी फेनूं सताबै
बुरा न लागै विशेष।
दुविधा मे ंजे घिरी घिरी गेलौं
प्रेमोॅ होलै पहार है।

चलोॅ हे सखी सब झूला लगाबोॅ
झुलि झुलि गैबै गीत,
मेंहदी छै रंग भरी निखरलोॅ
आबो देखोॅ न मीत।
रुप रंग बदली के आबे सताबो नै
रुसि रुसि जैथों बहार हे।