Last modified on 1 फ़रवरी 2021, at 19:46

उगी खेतों में / अनिता मंडा

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:46, 1 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अनिता मंडा |संग्रह= }} Category:हाइकु <...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
31.
होली-दीवाली
मुखिया की हवेली
चुप ही रही।
32.
उगी खेतों में
भुखमरी लाचारी
रोये किसान।
33
विदा ही हो ली
सूने पनघटों से
हँसी-ठिठोली।
34
सूनी शाखों पे
करते हस्ताक्षर
नव- पल्लव।
35
महक रही
वसंत की आहट
डालियों पर।
36
नींद से जागी
डाली पर कोंपलें
छाया वसंत।
37
फूटी कोंपलें
हुई गुदगुदी-सी
 खिला वसंत।
38
केसर घुली
खीर की कटोरी में
खिली है चंपा।
39
फूलों के होठ
चूमे तितलियों ने
बिखरी गंध।
40
पहाड़ ओढ़ें
चाँदी की रजाइयाँ
निर्धन काँपें।
41
घर-बाहर
धूप की तितलियाँ
फड़फड़ाएँ
42
गिलहरी-सी
दिसम्बर की धूप
पल में भागे
43
बुझा दी साँझ
करते हुए याद
बीते पलों को
44
पार्क में बैठ
एकांत हरा किया
भरे दिल से
45
चूमती बहे
लहर को लहर
हमसफर