Last modified on 3 फ़रवरी 2021, at 00:30

मुश्किल समय / अनिता मंडा

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:30, 3 फ़रवरी 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


गोद में उठाया हुआ बच्चा
माँ के माथे से बिंदी उतारकर
सजाता है अपने माथे पर
भरता है किलकारी

चुपके से खोलकर
ड्रेसिंग टेबल की दराज
दोनों हाथों में भर-भर पहनता है चूड़ियाँ
माँ की चुन्नी आँखों पर डाल
खेली जाती है छुप्पम- छुपाई

रो देता है दिल खोलकर
चोट लगने पर
सबसे जताता है प्यार बिंदास
कोई पर्देदारी नहीं

नादान बचपन
बेख़बर है हर सत्ता से
दीवारें उठ रही हैं हर कहीं
हर तरफ़

बाज़ार इसे भी बाँट ही देगा
गुलाबी और नीले में
समाज के बनाए विशेषण पहन
खो जाएगी इसकी सम्पूर्णता
कितना कठिन है इस समय
खिलते फूलों को सहेजना