जब जब की जाती है कोशिश
तुम्हें मारने की फिर से,
तुम्हें छोटा बनाने की,
सिद्ध करने की
तुम्हें अप्रासंगिक,
तुम अपराजेय
लाठी टेकते
उठ खड़े होते हो
हमारी चेतना की भूमि पर
सत्य के एक नए प्रयोग के साथ।
जब जब की जाती है कोशिश
नकारने की
तुम्हारे आदर्शों,
तुम्हारे विचारों को
तुम फिर जीवित हो जाते हो
फ़ीनिक्स पक्षी की तरह
अधिक प्रासंगिक,
अधिक समकालीन हो कर।
तुम्हारे विरोधी भी
कंफ़्यूज़ड है
करें तो आख़िर कैसे करें
विरोध तुम्हारा,
कैसे करें घृणा तुमसे
बिना स्वयं ही घायल हुए
अपने इन हथियारों से।
तुम समाहित हो
इस मिट्टी में,
मुझ में,
हम सब में
इस देश की समष्टि में
भारतीयता की
मानवता की
पहचान बन कर,
हवा और पानी की तरह,
साँसों की तरह
संस्कार की तरह।
तुम्हारे बिना मुश्किल है
कल्पना भी
हमारे भारतीय होने की,
और शायद
मनुष्य होने की भी।